बहुत शोर है मातहत लड़कियाँ मेरे ज़ानू पे सज्दा करें ख़ौफ़-आलूदगी शोर-ओ-शर की पज़ीराई में रो पड़े ये ज़मीनें सियह-नस्ल घोड़ों की आवाज़ से जागती हैं चश्म-ए-शब-कोर हर चाँदनी-रात में एक जल्सा करेगी ज़मीं फ़ील-ए-बे-ज़ोर की तरह पटती रही है उन्ही साअ'तों में ब-शर्त-ए-सिकन्दर कोई आइने के बराबर मिलेगा वो हँसती है और साया-ए-आफ़ियत के तसव्वुर को मजरूह करती है उसे फ़ील-ए-बे-ज़ोर के सामने डाल दो उस के चेहरे को टूटे हुए आइने से मुसख़्ख़र करो वो हँसती है और गिर्या-ए-नीम-शब के समुंदर पे अपना अलम खोलती है हाथ जल मकड़ियों से कुरेदे हुए पाँव में घास लिपटी हुई आफ़ियत है समुंदर की बहती हुई घास में आफ़ियत है समुंदर की आवाज़ में शोर है शोर में आफ़ियत मातहत लड़कियो मेरे ज़ानू पे सज्दा करो ये ज़मीनें सियह-नस्ल घोड़ों की आवाज़ से जागती हैं