शर्नाथी By ख़्वाब, वहशत, Nazm << नई इब्तिदा बहुत शोर है >> ख़्वाब शब की मुंडेरों पे बैठे हुए घूरते हैं मुझे मेरी आँखों में बसने को बेचैन हैं मैं इसी ख़ौफ़ से रात भर जागता हूँ कि मैं सो गया गर तो ये मेरी आँखों में बस जाएँगे और कल उन की क़ीमत चुकानी पड़ेगी मुझे Share on: