इस क़दर शोख़ निगाहों से न देखो मुझ को ग़ैरत-ए-हुस्न पे इल्ज़ाम न आ जाए कहीं तुम ने ख़ुद भी नहीं समझा है अभी तक जिस को लब पे वो ख़्वाहिश बे-नाम न आ जाए कहीं ये जो मासूम तमन्ना है तुम्हारे दिल में कितनी संगीन ख़ता है ये तुम्हें क्या मालूम और दुनिया में मोहब्बत के ख़ता-कारों पर किस क़दर ज़ुल्म हुआ है ये तुम्हें क्या मालूम अपनी बोसीदा रिवायात के वीरानों में तिश्ना रूहों को भटकते नहीं देखा तुम ने अपनी तहज़ीब के तारीक सितम-ख़ानों में आरज़ूओं को सिसकते नहीं देखा तुम ने कितनी लाशें हैं पस-ए-मदफ़न-ए-नामूस यहाँ अपने अज्दाद की तारीख़ उठा कर देखो ज़ीनत-ख़ाना जो बे-रूह सी तस्वीरें हैं चीख़ उट्ठेंगी ज़रा हाथ लगा कर देखो अपनी दुनिया तो तिजारत की वो मंडी है जहाँ जिस्म की बात ही क्या रूह भी बिक जाती है दाम लग जाएँ तो क्या इश्वा-ओ-अंदाज़-ओ-अदा प्यार सी शय सर-ए-बाज़ार चली आती है तुम को भी एक न इक दिन यूँही बिकना होगा अपने नामूस की देरीना रिवायत के लिए कोई ताजिर तुम्हें बाज़ार से ले जाएगा अपनी बाँहों में घड़ी भर की हरारत के लिए लौट जाओ कि यहाँ प्यार का हासिल क्या है नाला-ए-शब के सिवा आह-ए-सहर दम के सिवा और क्या देगा ज़माना तुम्हें इनआम-ए-वफ़ा आतिश-ए-ग़म के सिवा दीदा-पुर-नम के सिवा