जब अँधेरे से मैं डर जाता हूँ अब भी अक्सर तेरी उँगली को पकड़ने का ख़याल आता है मुस्कुराहट हो या आहें या ख़ुशी के आँसू हर इक एहसास की लज़्ज़त में समाया है तू जब उभरती है रसोई से रसीली ख़ुशबू जब किसी फूल के चेहरे पे जमाल आता है तेरी उँगली को पकड़ने का ख़याल आता है मेरी आवाज़ ज़बाँ और मिरा अंदाज़-ए-बयाँ मेरे एहसास ओ ख़यालात नज़रिया इम्काँ तू ने ही बाँधे मिरे साथ के साज़-ओ-सामाँ फिर भी गर मन में मिरे कोई वबाल आता है तेरी उँगली को पकड़ने का ख़याल आता है शम-ए-उम्मीद लरज़ती है सहर से पहले जब उतरती है थकन दिल में सफ़र से पहले ख़ून हो जाते हैं अरमान असर से पहले रास्ते में कोई पेचीदा सवाल आता है तेरी उँगली को पकड़ने का ख़याल आता है