दर दीवार और दरीचे एक मुआहिदा हैं अदम-ए-मुदाख़लत का मशरूत मुआहिदा दो मोहज़्ज़ब इंसानों के दरमियाँ दो मुतमद्दिन ख़ानदानों के दरमियाँ दीवार तहज़ीब की तर्जुमान तमद्दुन की पहचान और बक़ा-ए-बाहमी की आईना-दार हीला हुक़ूक़ की ज़मानत बका-ए-तहीयत की अलामत हैत और अहाता ज़ेहनी-ओ-जिस्मानी आसूदगी और सुख-चैन के लिए लाज़िम है दख़्ल दर माक़ूलात ग़ैर-अख़लाक़ी ही नहीं ग़ैर-इंसानी रवय्या भी है घर का हक़ है कि वो दूसरे घर की बे-जा मुदाख़लत से महफ़ूज़ रहे हम दीवार तो हमदर्द होता है ख़बर-गीर होता है ख़बर-रसाँ नहीं बन सकता तख़य्युल आसूदगी सुख घटाती और दुख बढ़ाती है शकर-गंजी पैदा करती है आज़ुर्दा-दिली का मौजिब बनती है फ़ासले दीवार की पुख़्तगी से नहीं दिलों की सख़्ती से बढ़ते हैं पुख़्ता दीवार तो तमद्दुन की बक़ा है सूरी फ़ासले बे-मा'नी हो जाते हैं अगर क़ल्ब-ओ-नज़र शाद हों हक़ ख़ल्वत ख़लीज नहीं फ़राख़ी तरफ़ैन है प्राईवेसी का हक़ तहज़ीब-ए-इंसानी की मेराज है