मुझ में अब मैं नज़र आता नहीं तुझ को और तू दिल में ये सोचती रहती है कि इक दिन शायद मेरी हस्ती मुझे तू ने ही वदीअ'त की थी तुझ में अब तू नज़र आती नहीं मुझ को और मैं दिल में ये सोचता रहता हूँ कि मैं ने शायद तेरे साए से नहीं तुझ से मोहब्बत की थी फिर ये बेकार सी इक क़ैद-ए-रिफ़ाक़त क्या है तुझे मेरी तो मुझे तेरी ज़रूरत क्या है