विदाअ' By Nazm << बंधन तज्दीद-ए-मोहब्बत >> वक़्त-ए-रुख़्सत वो चुप थी बस हाथों में गुलदस्ता था जिस में तीन ही फूल थे लेकिन हर इक बातें करता था दो उस की आँखों जैसे थे एक मिरे दिल जैसा था Share on: