बर्फ़ यूँही गिरे चोटियों को पहाड़ों की ढकती रहे कोहसारों में चाँदी पिघलती रहे आग जलती रहे मेंह बरसता रहे आरज़ुओं के बेचैन से क़ाफ़िले यूँही आहिस्तगी से सरकते रहें हम यूँही ख़्वाब की वादियों से गुज़रते रहें हम यूँही हर तरफ़ वादियों कोहसारों में तहलील होते रहें दरख़्तों की शाख़ों पे इस तरह ही साफ़-शफ़्फ़ाफ़ मोती दमकते रहें रक़्स शाख़ों का पैहम ही जारी रहे बर्फ़ की आग बस यूँही जलती रहे बर्फ़ यूँ ही गिरे