बादल जब घिर कर आते हैं मेरे अब्बू डर जाते हैं वो कहते हैं देखो बेटे बारिश रहमत तो है बे-शक कुछ मुझ को इंकार नहीं है छत भी मैं बनवा लूंगा और छाता भी ले आऊँगा मैं लेकिन ये गलियों सड़कों पर जो पानी भर जाता है तड़पा जाता है ये मुझ को इस का कुछ हल भी तो होगा मैं ने जब पूछा तो बोले आओ हम सब पहले राह पे आएँ मतलब ये कि पानी के बहने की कोई राह निकालें गर ऐसा हो जाए तो फिर बारिश रहमत ही रहमत है