बंध गई है रहमत-ए-हक़ से हवा बरसात की नाम खुलने का नहीं लेती घटा बरसात की उग रहा है हर तरफ़ सब्ज़ा दर-ओ-दीवार पर इंतिहा गर्मी की है और इब्तिदा बरसात की देखना सूखी हुई शाख़ों में भी जान आ गई हक़ में पौदों के मसीहा है हवा बरसात की ख़ुद-बख़ुद ताज़ा उमंगें जोश पर आने लगीं दिल को गरमाने लगी ठंडी हवा बरसात की वो दुआएँ मय-कशों की और वो लुत्फ़-ए-इंतिज़ार हाए किन नाज़ों से चलती है हवा बरसता की मैं ये समझा अब्र के रंगीन टुकड़े देख कर तख़्त परियों के उड़ा लाई हवा बरसात की नाज़ हो जिस को बहार-ए-मिस्र-ओ-शाम-ओ-रूम पर सर-ज़मीन-ए-हिंद में देखे फ़ज़ा बरसात की