किस क़दर दिलकश सुहानी शाम है बरसात की बोलने वाली है अब तस्वीर गोया रात की दामन-ए-मग़रिब में पोशीदा रुख़-ए-ख़ुर्शीद है आमद आमद है क़मर की उस का शौक़-ए-दीद है ख़ामा-ए-क़ुदरत के पा-ए-ढब शफ़क़ के रंग में सर-ब-सर डूबे हुए हैं सब शफ़क़ के रंग में सर उठा कर आसमाँ की जामा-ज़ेबी देखिए उस की रंगीनी में क्या है दिल-फ़रेबी देखिए ये रू-पहला ये सुनहरा रंग ही कुछ और है रंग ही कुछ और बे-शक ढंग ही कुछ और है काम सोने का बना है गुम्बद-ए-अफ़्लाक पर ज़ौ-फ़गन होता है आलम इस का फ़र्श-ए-ख़ाक पर बज़्म-ए-गर्दूँ पर हुआ है अंजुमन-आरा कोई झाँकता पर्दे से है शायद ये मह-पारा कोई मैं न क्यूँ क़ुर्बान जाऊँ इस अदा इस ढंग के आसमाँ पर खिल रहे हैं फूल लाखों रंग के हैं लकीरें मुख़्तलिफ़ रंगों की रंगीं दाग़ है ये ख़ुदा की शान है क्या आसमाँ पर बाग़ है शाम है बरसात की दिलचस्प मंज़र साथ है देखिए होता है क्या क़ुदरत का इस में हाथ है सूरत-ए-तस्वीर चुप 'बिस्मिल' हुए ये बोल कर हुस्न की दुनिया है देखो दीदा-ए-दिल खोल कर