बरसात की रुत आई घनघोर घटा छाई आकाश का मन लहका धरती को हँसी आई बरसात की रुत आई घनघोर घटा छाई पुरवाई की सन-सन में शादाब चमन झूमे शाख़ों की कमर लचकी फूलों के बदन झूमे रंगीन नज़ारों में मदहोश फुवारों में झरनों की मधुर लय पर जंगल की फ़ज़ा गाई बरसात की रुत आई घनघोर घटा छाई मौसम की जवानी फिर जादू सा जगाती है आवाज़ पपीहे की फिर होश उड़ाती है फिर गूँज उठे नग़्मे फिर जाग उठे अरमाँ सीने में उमंगें फिर लेने लगीं अंगड़ाई बरसात की रुत आई घनघोर घटा छाई मैदान में बस्ती में कोहसार में पानी है बाज़ार में पानी है गुलज़ार में पानी है उमडी हुई नदियाँ हैं चढ़ते हुए नाले हैं हर बूँद मजीरा है हर मौज है शहनाई बरसात की रुत आई घनघोर घटा छाई