लो फिर बसंत आई फूलों पे रंग लाई चलो बे-दरंग लब-ए-आब-ए-गंग बजे जल-तरंग मन पर उमंग छाई फूलों पे रंग लाई लो फिर बसंत आई आफ़त गई ख़िज़ाँ की क़िस्मत फिरी जहाँ की चले मय-गुसार सू-ए-लाला-ज़ार म-ए-पर्दा-दार शीशे के दर से झाँकी क़िस्मत फिरी जहाँ की आफ़त गई ख़िज़ाँ की खेतों का हर चरिंदा बाग़ों का हर परिंदा कोई गर्म-ख़ेज़ कोई नग़्मा-रेज़ सुबुक और तेज़ फिर हो गया है ज़िंदा बाग़ों का हर परिंदा खेतों का हर चरिंदा धरती के बेल-बूटे अंदाज़-ए-नौ से फूटे हुआ बख़्त सब्ज़ मिला रख़्त सब्ज़ हैं दरख़्त सब्ज़ बन बन के सब्ज़ निकले अनदाज़-ए-नौ से फूटे धरती के बेल-बूटे फूली हुई है सरसों भूली हुई है सरसों नहीं कुछ भी याद यूँही बा-मुराद यूँही शाद शाद गोया रहेगी बरसों भूली हुई है सरसों फूली हुई है सरसों लड़कों की जंग देखो डोर और पतंग देखो कोई मार खाए कोई खिलखिलाए कोई मुँह चिढ़ाए तिफ़्ली के रंग देखो डोर और पतंग देखो लड़कों की जंग देखो है इश्क़ भी जुनूँ भी मस्ती भी जोश-ए-ख़ूँ भी कहीं दिल में दर्द कहीं आह-ए-सर्द कहीं रंग-ए-ज़र्द है यूँ भी और यूँ भी मस्ती भी जोश-ए-ख़ूँ भी है इश्क़ भी जुनूँ भी इक नाज़नीं ने पहने फूलों के ज़र्द गहने है मगर उदास नहीं पी के पास ग़म-ओ-रंज-ओ-यास दिल को पड़े हैं सहने इक नाज़नीं ने पहने फूलों के ज़र्द गहने