बस्तियाँ ज़िंदा रहेंगी

तुम ज़मीं पर एक भी साया अगर देखो तो समझो आसमानों के तले ये बस्तियाँ ज़िंदा रहेंगी
वो जो मातम कर रहे हैं रो रहे हैं अपने बच्चों को

नहीं आता यक़ीं उन को वो जीते हैं अब तक तितलियाँ उन के तआ'क़ुब में गई हैं
वो जो मातम कर रहे हैं अपने बच्चों का

उन्हें कह दो
पहाड़ों से निदा आती नहीं तो ये न सोचें शहर मुर्दा हो गए हैं

आज की तारीख़ में सूरज न चमके गर मकानों पर
तो ये मतलब न लो ज़ुल्मत मुक़द्दर हो चुकी है

रात के उस पार भी इक रात है लम्बी अनोखी और डरावनी रात ये सच है
कि उस के हाथ में तस्वीर है इक सैल-ए-हैरत की

जो मातम कर रहे हैं उन से ये कह दो
लहू बहता है जब आबादियों में तंग और तारीक रस्तों पर

तो इक आवाज़ आती है
हज़ारों हाथ उठते हैं

फ़सीलों से परे भी चीख़ की आवाज़ लम्बी गूँज बन कर कौंदती रहती है सदियों तक
डरावने लफ़्ज़ गिद्धों की तरह उड़ते हैं शहरों पर

कोई कितना भी डर कर बंद कर ले घर के दरवाज़े
मगर वो चैन से बत्ती बुझा कर सो नहीं सकता

अँधेरे में हज़ारों हाथ उठते हैं
अँधेरे में हज़ारों चीख़ते हैं भूत बन बन कर डराते हैं

जो मातम कर रहे हैं उन से ये कह दो
समझ लें आसमानों के तले ये जगमगाती बस्तियाँ ज़िंदा रहेंगी

मर नहीं सकतीं


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