नमक के सहरा में अपनी पलकों से टुकड़े टुकड़े ये ख़्वाब चुन लूँ तो तुझ को देखूँ शिकस्ता-हाथों से हसरतों के अज़ाब चुन लूँ तो तुझ को देखूँ जो तुझ को देखूँ तो जान पाऊँ कि इस सफ़-ए-दोस्ताँ में तेरा मक़ाम क्या है नक़ीब-ए-जाँ तू कहाँ खड़ा है वो सफ़ कि जिस ने मोहब्बतों के गुलाब पहने अज़ीम चाहत के सुर्ख़ लम्हों की हिद्दतों से बदन सजाए फ़क़त तिरा जिस्म ही नहीं जल्वा-ज़न मिरी जाँ बल्कि सारा जहाँ खड़ा है