असर अनोखा हुआ जब आस्तीं का बटन गिर के खो गया जानाँ तुम्हारी याद का सीना हज़ार चाक हुआ वो एक नूर का धागा ध्यान में आया कसा हुआ सा कोई तार साज़ का जैसे लगा के पेच कई दिल को बाँधने की अदा गुलाबी होंटों से हो कर गुज़रने वाली डोर तुम्हारे दाँतों से क्या पट से टूट जाती थी कुशादा आँखों के गोशों से सर उबलते थे अब ऐसे बाँसुरी पे कोई लब नहीं रखता तुम्हारी तरह बटन और कौन टाँकेगा बस एक साँस की सूई है ज़ख़्म सीती है