मुझे नारों से रग़बत है वो मेरे ख़ून की हिद्दत का बाइ'स हैं वो मेरी ज़िंदगी का जुज़्व-ए-ला-यंफक हज़ारों साल से मेरे इरादों हौसलों और वलवलों की दास्तानों में नुमायाँ हैं वो मेरी ज़ात के आईना-ख़ाने में मुसलसल रक़्स करते हैं ज़माने मेरी यादों से फिसल कर सामने आए तो मैं इक दश्त-ए-इम्काँ से निकल कर मुस्कुरा उट्ठा मिरे अतराफ़ में रंगों की बारिश थी हवाओं में ख़ुशी तहलील हो कर राहत-ए-जाँ थी ख़ुनुक पानी के चश्मे दूध की नहरें मिरी ख़्वाहिश पे बहते थे सभी अस्मार मेरे इक इशारे पर मिरी झोली में आ गिरते हर इक जानिब हसीं फूलों के तख़्ते थे ख़िरामाँ साअ'तों की बे-करानी मेरा हासिल थी ख़िरामाँ साअ'तें लेकिन मुझे कब रास आई हैं सुकूँ ला-हासिली का बे-नतीजा ज़िंदगी का बाब-ए-अव्वल है नतीजा चाहिए हर शय का इक आग़ाज़ इक अंजाम होता है उसी लम्हे मिरी आँखों पे इक कौंदा सा लपका था उसी लम्हे ज़बाँ पर एक ना'रा था बग़ावत का बग़ावत का कि अपनी ज़ात के एलान करने का