अपने ख़ुदा को हाज़िर जान के मैं जो कहूँगा सच ही कहूँगा सच के अलावा कुछ न कहूँगा मुझ को कुछ मालूम नहीं है बस इतना मालूम है साहब कमरे में इक लाश पड़ी थी लाश के पास इक शख़्स खड़ा था उस की बाएँ आँख में तिल था दूध से उजला उस का दिल था सब कहते हैं वो क़ातिल था!