बे-हिसी दर्द की By Nazm << मोहब्बत काएनाती है मुन्ने की फुलवारी >> हर घड़ी वहशतें दिल मिरा बद-गुमाँ बे-हिसी दर्द की फ़स्ल-ए-ग़म क्या लिखूँ रूनुमा हादिसा आँख से रूह तक दर्द की जस्त है ये बदन रूठ कर आग में डाल कर आख़िरी हद तलक आन पहुँची हूँ मैं ये कहानी है और इस कहानी में है हर दुआ मुंतशिर Share on: