बाग़ के एक गोशे में लेटे हुए उस बूढ़े को क्या ख़बर कि उस की बनाई हुई इमारत कितनी बदल गई है उस की दीवारें कितनी ख़ुद-सर हो गई हैं उस की खिड़कियाँ कितनी बे-पर्दा हो गई हैं उस इमारत में रखी हुई कुर्सियाँ कितनी मग़रूर हो गई हैं और कुर्सियों के क़िस्से गिर्द-ओ-नवाह में मशहूर हो गए हैं बाग़ की एक छोटी सी क़ब्र में लेटे हुए उस बूढ़े को क्या मालूम कि उस के घर में जंग छिड़ी हुई है मूँछें और दाढ़ियाँ बाहमी जंग में मसरूफ़ हैं बुर्के और साड़ियाँ आपस में लड़ रही हैं वो बूढ़ा बे-ख़बर सो रहा है लेकिन जंग का शोर उसे नींद से जगा देगा उसे क़ब्र से निकाल कर बाहर फेंक देगा