क़हक़हे हवाओं में बिखर गए कुर्सियाँ और टेबलें वीरान हो गईं शाम फिर उदास हो गई एक बे-नाम सोच में डूब गई जैसे घर के कूड़े-दान में मुड़ी तुड़ि सी कोई चीज़ मिल गई जैसे चलते चलते राह में कोई बात याद आ गई ख़ाली हैं गिलास ख़ाली हैं बोतलें ज़िंदगी भी ख़ाली है ख़ाली बोतलों की तरह शाम फिर उदास हो गई एक बे-नाम सोच में डूब गई