कुछ ख़बर ऐ हिन्द वालो है कि तुम हो बे-ख़बर कर रहा है ज़ुल्म ज़ालिम क़ौम के हर फ़र्द पर ये सरापा ज़ुल्म है बेदाद की तस्वीर है पार है वो सब के दिल से जो कमाँ में तीर है बरबरियत इस का शेवा शैतनत है इस का काम चाहता है उम्र भर रखना तुम्हें अपना ग़ुलाम इस का पेशा रहज़नी है इस का मस्लक है रिया इस का मज़हब और क्या है इस का मज़हब है दग़ा बेकस-ओ-मजबूर दिल पर रहम कुछ खाता नहीं ज़ुल्म कब करता नहीं आज़ार कब ढाता नहीं ऐसे ज़ालिम से हमेशा तुम को लड़ना चाहिए पाँव के नीचे सितमगर को रगड़ना चाहिए