एक बे-कैफ़ शाम के बस में रेंगते साए ऊँघती राहें चंद सहमे हुए चहचहे और मैं ज़िंदगी रंग-ओ-बू से बेगाना सर-निगूँ दिल-गिरफ़्ता और उदास आह इस के क़हक़हे और मैं चाहता हूँ गुज़र सकूँ इक बार आरज़ूओं के चीस्तानों से हों जहाँ लाखों चहचहे और मैं हर-नफ़स में हो नग़्मा-ए-नाहीद ख़ाक-ए-पा हो मेरी बहार-ब-दोश ये समाँ जावेदाँ रहे और मैं दिल-ए-नाकाम की तन-आसानी ख़ंदा-ज़न है मिरे इरादों पर वर्ना दरिया-ए-ग़म बहे और मैं जाने यूँही रहेंगे अब कब तक रेंगते साए ऊँघती राहें चंद सहमे हुए चहचहे और मैं