एक दिन मुझ से ये फ़रमाने लगी बीवी मिरी मेरी सौतन बन गई है आप की ये शाएरी वो ये कह कर मुझ से करती है हमेशा एहतिजाज शाएरी से आप की होता है मुझ को इख़्तिलाज सोचती हूँ किस तरह होगा हमारा अब निबाह मुझ को रोटी चाहिए और आप को बस वाह वाह मुझ को रहती है सदा बच्चों के मुस्तक़बिल की धुन आप बैठे कर रहे हैं फ़ाएलातुन फ़ाएलुन रात काफ़ी हो चुकी है नींद में बच्चे हैं धुत आप यूँ साकित हुए बैठे हैं जैसे कोई बुत मैं ये कहती हूँ चुका दीजे जो पिछ्ला क़र्ज़ है आप अपनी धुन में कहते हैं कि मतला अर्ज़ है मैं ये कहती हूँ कि देखा कीजिए मौक़ा-महल छेड़ देते हैं कहीं भी ग़ैर-मतबूआ ग़ज़ल मान लेती हूँ मैं चलिए आप हैं शाएर ग्रेट शाएरी से भर नहीं सकता मगर बच्चों का पेट अपने हिंदुस्तान में मुर्दा-परस्ती आम है जितने शाएर मर चुके हैं बस उन्हीं का नाम है जब तलक ज़िंदा रहे पैसे न थे करने को ख़र्च मर गए तो हो रही है मिर्ज़ा-'ग़ालिब' पर रिसर्च मैं ये बोला बंद कर अपना ये बे-हूदा कलाम तुझ को क्या मालूम क्या है एक शाएर का मक़ाम झूट है शामिल तसन्नो है न कुछ इस में दरोग़ शाएरी से पा रही है आज भी उर्दू फ़रोग़ हूँ सना-ख़्वाँ मैं 'फ़िगार'-ओ-'साग़र'-ओ-'शहबाज़' का रुख़ बदल डाला जिन्हों ने शेर के पर्वाज़ का