मसअला ये नहीं By Nazm << बेगम और शाएरी ख़्वाहिश से तमन्ना तक >> नहीं मसअला ये नहीं ये कोई दुख नहीं सौ मसाइब ये बे-सम्तियाँ जिस्म और रूह की बे-कली दर्द अपने पराए कई मुश्तरक सोच की दोज़ख़ें जंग एटम हों की वग़ैरा वग़ैरा कोई दुख नहीं दुख तो ये है कि मैं साथ अपने दुखों का जो सरमाया लाया था वो ख़त्म होता नहीं Share on: