बे-ज़ारी की आख़िरी साअत By Nazm << अज़ली मसर्रतों की अज़ली म... शेर बेचारा >> जब पहाड़ ढे जाएँगे अपने ही बोझ से समुंदर डूब जाएँगे अपनी ही गहराई में सूरज जल जाएँगे अपनी ही आग में तो एक आदमी देख रहा होगा ये मंज़र बे-ज़ारी के साथ Share on: