हम हँस कर ही रह जाते हैं आँसू आ कर रुक जाते हैं तुम चुप्पी समझ न पाते हो हम चुप हो कर कह जाते हैं वो शोर जहाँ होती थी बातें तब्दील हो गई सन्नाटों में मैं रात और तू सुब्ह हो गया जो मिलते हैं बस शामों में मैं रह गई तुझ को याद किए बस झूटी हँसी ठहाकों में तू डूब गया ग़म में कुछ ज़ियादा कि छूट गई मैं यादों में