बहुत उछले वज़ीर-ए-ताब-कारी वो नहीं आई अंधेरे में ये शब-ए-तन्हा गुज़ारी वो नहीं आई किसी ने चार छै दस मर्तबा काटा था गालों पर मैं करता ही रहा मच्छर-शुमारी वो नहीं आई हमारे इश्क़ की तज्दीद में था वापडा हाइल अंधेरे ही में ज़ुल्फ़ उस की सँवारी वो नहीं आई हमारे मुल्क में नूर-ए-अदालत आम करने को बहुत गरजा था अदल-ए-इफ़्तिख़ारी वो नहीं आई ज़रा सी देर को बाद-ए-बहारी आई थी लेकिन तड़प उट्ठे थे गर्मी से बिहारी वो नहीं आई मोहल्ले से तो सब आए थे शम-ए-आरज़ू ले कर हुकूमत का था शायद पाँव भारी वो नहीं आई किया संतोष ने इंकार जब पंखे को झलने से तो छत पर सो गई मीना-कुमारी वो नहीं आई हमारी बेबसी का अब तमाशा देखते क्या हो सितारो तुम तो सो जाओ हमारी वो नहीं आई