मन में उमंगें जी में तरंगें रूप अनूप जवानी दुनिया एक कहानी मन की मैना चहकी मेरी दुनिया महकी झूम झूम कर घूम रही थी मेरे मन में आया फूल की शोभा है किस कारन कैसी है बू-बास जब नहीं भौंरा पास मिटीं उमंगें बुझीं तरंगें मन से उट्ठी हूक दब कर रह गई कूक बीत गया दिन शाम हुई फिर छा गई काली रात अँधियारी अंधकारी अँधियारी अंधकारी जिस से जीवन खाए मात मेरे मन में फिर से फूली आशा की फुलवारी जुग जुग ये अँधियारी जिस ने तारों की झिलमिल से पहुँचाया सन्देस इन नैनों को देख रहे हैं पी बैठे परदेस