ये उन ज़मानों की दास्ताँ है कि जब ख़िरद के कसीफ़ पंजों ने मेरे सुम्बुल परों में नाख़ुन नहीं खुबोए थे उन ज़मानों में सपने साँपों के बिल नहीं थे अनंत नागा की झड़ती चमड़ी संपोलियों का ख़ुदा नहीं थी गगन का केसर गिद्धों का लुक़्मा नहीं बना था हमारे सूरत-गरों ने उल्टे अमीक़ ग़ारों को सीध देते पलीद चमगादड़ों का चेहरा नहीं तका था अगरचे कैंसर के ज़र्द कीड़े रजज़ की लय पर थिरक रहे थे मैं अपने दिल की लगाम थामे कुलाह ख़ुद में से झाँकता था सो मेरी नब्ज़ों के हिनहिनाने से ज़र्द कीड़ों में ख़ौफ़ क़ाएम था पर अचानक सफ़ेद कोटों में बंद सिरिंजों ने मेरी धड़कन पे कान रखे यूँ नेश दाँतों से मेरे कूल्हे की हड्डियों में नक़ब लगाई कि शाह पोरस के मस्त हाथी ने उस की फ़ौजों को रौंद डाला सफ़ेद ख़लियों के शहसवारों ने शहबा दुलदुल की पैरवी में सिपर उठाई नियाम से तेग़ को निकाला तो ज़र्द कीड़ों ने अपने नेज़ों पे ख़ूनी सफ़्हे उठा लिए थे मैं मर रहा हूँ सिसक रहा हूँ ये मेरा बिस्तर जहाँ में बे-सुध पड़ा हुआ हूँ मिरी चिता है सो मेरे हाथों में मेरे बालों के जलते गुच्छे हैं मेरे ढाँचे के रक़्स-ए-आख़िर को देखने ये स्याह कपड़ों में कौन बुढ़िया हैं क्या बड़बड़ा रही हैं इन्हें उठाओ खजूर की गुठलियाँ हटाओ ये ख़ूनी थैले में किस का ख़ूँ है लहू के क़तरों का विर्द रोको ये विर्द आँतों को काट खाते हैं और मसानों को चाब जाते हैं ये रक़्स-ए-आख़िर आख़िरी नहीं है मैं इक ज्वाला-मुखी का क़िस्सा हूँ मैं इन्फ़िजार-ए-अज़ीम की ताक़तों में ज़र्रा हूँ मैं मिल्की वे की सफ़ेद राहों में ज़र्द सूरज के आशियाने में रहने वाला गो जल रहा हूँ जला नहीं हूँ मैं मर रहा हूँ मरा नहीं हूँ