दम आ नहीं रहा नफ़स नफ़स घुटन क़दम क़दम थकन जले हुए पर आसमाँ से गिर रहे हैं कबाब हो गए हैं क्या प्रकाश के स्वप्न देखते परिंद ठिठुर रहे हैं ज़महरीर मुर्दा घर में दो दराज़ जिस्म लबों पे फीफड़ी बंधी हुई उतर रहा है आँख में सफ़ेद मोतिया दिलों के सग गली में भौंकते हैं ढूँढते हैं दामन-आश्ना मुसाफ़िरों के सूँघते हैं प्रीत की महक थकन से बैठते हैं हार कर कुरेदती है ख़्वाब की चुड़ैल क़ब्र से निकालती है दाग़ दाग़ धड़ खरोचती है रात भर कबूद जिल्द ये ख़लफ़िशार जिस्म के उजाड़ मर्ग़-ज़ार में किसी परिंद की पुकार दरख़्त ढह चुके सभी पशू पखेरू जा चुके ये आख़िरी परिंदा कौन है हुमा या मैं ये कौन हड्डियाँ चबा रहा है दिल का मास खा रहा है सीना रेगज़ार ग़मों के अंधकार में अटे नगर ये दिल हैं या हैं रेत में धँसे हुए खंडर