जुदाई और क्या है मैं जिसे सहता नहीं रहता ये तुम से रोज़ का मिलना जुदा होने से पहले देर तक इक बात से इक बात तक लफ़्ज़ों का लुढ़काना नए मौसम की बातें आलिमाना गुफ़्तुगूएँ उन मनाज़िर की सियासत जिन का चेहरा कल दिखाएगी मुलाक़ातें हैं और ऐसी मुलाक़ातें कि बाहम रोज़ का मिलना न मिलना कोई भी अर्ज़िश नहीं रखता ये कैसा वस्ल है जिस में हदें मिटती नहीं बातों से बातों का मिलाना मैं से तू तक का सफ़र भी बन नहीं पाता ये कैसे राब्ते हैं कुर्सियों से कुर्सियाँ मिलती हैं लेकिन दरमियानी फ़ासले मिटते नहीं