बोझ By Nazm << दस्तक बेवा की ईद >> मैं बिखरे हुए सूरज की दो क़ाशें सागर में डुबो कर आया हूँ अब लौट रहा हूँ अपनी तरफ़ अंधे सागर से राह मुनव्वर होती है तआ'क़ुब में कोई फिर मेरी तरफ़ दौड़ा हुआ बढ़ने लगा मैं लम्हा लम्हा काँधों पर फिर बोझ सा महसूस करता हूँ Share on: