नुक़्सान उठा कर भी जो सच बोल रहा है वो अपने लिए ख़ुल्द का दर खोल रहा है क्या मुँह वो क़यामत में दिखाएगा ख़ुदा को दुक्कान पे जो बैठ के कम तौल रहा है जाँचा गया परखा गया क़ुरआन का हर बोल हर अह्द में हर मुल्क में अनमोल रहा है सुनता हूँ हदीसें तो मुझे लगता है ऐसा जैसे ये कोई कानों में रस घोल रहा है ये सन हुआ 'माइल' का मगर बातें हैं ऐसी जैसे कोई इक बच्चा है जो बोल रहा है