बुलबुल ऐ रंग भरे गुलाब के फूल इस शान इस आब-ओ-ताब के फूल दिलचस्प बहुत हैं रंग तेरे हैं मुझ को पसंद ढंग तेरे खिलता है जो तू इस अंजुमन में लगती है इक आग सी चमन में क्या ये असर है पंखुड़ी में कैसी है चटक कली कली में किस ने तुझे इस-क़दर सजाया किस ने तुझे बाग़ में खिलाया क्यों तुझ में है दिलकशी ज़ियादा किस मुल्क का तू है शाह-ज़ादा गुलाब ऐ रंग भरे तराने वाली गुलशन में बहार गाने वाली ऐ बाग़ की ला-जवाब चिड़िया ऐ शेफ़्ता-ए-गुलाब चिड़िया जिस ने तुझे चहचहे दिए हैं दिलचस्प ये ज़मज़मे दिए हैं उस ने मुझे फूल है बनाया इक पेड़ की शाख़ से उगाया सब फूल हैं मेरे आगे सादा उस बाग़ का हूँ मैं शाहज़ादा मुझ सा नहीं और कोई ख़ुश-बख़्त है मेरे लिए बिहार का तख़्त बुलबुल प्यारे मिरे ऐ गुलाब के फूल ऐ गुलशन-ए-ला-जवाब के फूल रंगीन ख़मोश सीधे सादे ऐ मुल्क-ए-चमन के शाहज़ादे करती है बहार जब किनारा हो जाता है ज़र्द बाग़ सारा आता नहीं क्यूँ मुझे नज़र तू जाता है छुपा छुपा किधर तू मुरझाती हैं तेरी सारी कलियाँ रहती नहीं फिर ये रंग-रलियाँ उड़ जाती है बू हिना की मानिंद होता है फ़ना हवा की मानिंद गुलाब ऐ मुतरिबा-ए-बहार बुलबुल ऐ आशिक़-ए-बे-क़रार बुलबुल होता हूँ मैं ख़ाक ही से पैदा आख़िर को हूँ ख़ाक ही में मिलता ग़म-ख़्वार भी ग़म-गुसार भी है माँ भी है यही मज़ार भी है दुनिया में हैं जितने फूल कलियाँ है सब में बक़ा फ़ना नुमायाँ मुरझा के हर एक फूल पत्ता होता है फिर इस ज़मीं से पैदा हर फूल में है ख़ुदा की क़ुदरत हर ख़ार में है उसी की हिकमत