कौन है वो कुछ नहीं जानते देख सकते नहीं दुनिया की दीवारों में चुने हुए पत्थर कौन मेरे ख़्वाबों में आसमानों से उतरता है जादू-ज़दा लोगों को दीवारों से निकाल कर ज़िंदा दिलों की बस्तियाँ आबाद करना चाहता है मगर ये लोग कैसे हैं ब-ज़िद हैं दिलों तक जाते रस्ते बंद रखने पर आँखों ज़बानों और दिमाग़ों को दीवारों में क़ैद रखने पर मुसिर हैं में हैरान हूँ कि दीवारें भी चलती हैं कुचलती जाती हैं रऊनत से सभी मासूम जज़्बों को किताबों से उमडती रौशनी को दिलों में नफ़रतें भर कर उठा कर सर ये चलते हैं रऊनत से सजा कर अपने माथे पर निशाँ सज्दों के सब से फ़ख़्रिया कहते हैं हम ही मुत्तक़ी हैं और ज़ाहिद हैं मगर उन की क़नाअ'त गिर्या-ज़ारी ज़ोहद-ओ-तक़्वा दिखावा है बनावट और सजावट है ये जिस के नाम पर धोके बाँटते फिरते हैं मस्जिदों और बाज़ारों में उसे सज्दों से क्या मतलब उसे तो दिल बसाने हैं और इस जादू-ज़दा बस्ती को जन्नत में बदलना है