चाँद

चुपके चुपके रात को तशरीफ़ जब लाता है चाँद
हर तरफ़ धरती पे कैसा नूर बरसाता है चाँद

पहले दिन के चाँद को सब लोग कहते हैं हिलाल
चौदहवीं तारीख़ हो तो बद्र कहलाता है चाँद

पुर-सुकूँ माहौल तारे कहकशाँ ठंडी हवा
रात की महफ़िल में अक्सर रक़्स फ़रमाता है चाँद

जब घटा घनघोर आती है कभी बरसात में
ओढ़ कर सपनों की चादर शब में सो जाता है चाँद

कहती है बच्चे को मेरा चाँद कहते प्यार से
इस्तिआ'रा प्यार में इक माँ के बन जाता है चाँद

हर घड़ी बेताब हैं मामा के दर्शन के लिए
छोटे बच्चों के दिलों को ख़ूब बहलाता है चाँद

तुम को भी बचपन में ऐ 'अबरार' कितना प्यार था
जिस तरह 'दानिश' मियाँ को आज-कल भाता था चाँद


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