चंद बूढ़ी नज़्में

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पोती से दादी बनने के लम्बे सफ़र में

ऐसा कोई पड़ाव नहीं आया था जिस पर
रुक के ताज़ा दम होने की

सूखी सोंधी पयाल पे पड़ के
मीठे मीठे सपनों में सो जाने की मोहलत मिलती

अब मंज़िल पर आ के थक के चूर पड़ी वो
मीठे सपनों में सो जाने की कोशिश

करते करते क्या बेहाल हुई जाती है
खाँस खाँस के सारी रात गुज़र जाती है


भरे-पुरे महलों जैसे इस घर का

इक इक कमरा
अपने अपने नाम से अब रिज़र्व करा रक्खा है सभों ने

वो जो बरसाती में बीती यादें ओढ़ के लेटा
अपने दिन गिनता है

नेम प्लेट पे घर के उसी बूढ़े का नाम
लिखा हुआ है बड़े बड़े हर्फ़ों में


रस्ता बिल्कुल साफ़ है

पुख़्ता सीधी सड़क है
नीले वाले बाग़ के फूलों से मिलने रोज़ाना

जाया जा सकता है लेकिन कैसे
सोच के ही पैरों में ऐंठन होने लगती है

और दम बे-दम होने लगता है
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बेताबी से ढूँड रहा है कैसे पाएगा अब
वो सब कुछ जो छोड़ गया था

नए नए सामानों से घर छत तक अटा पड़ा है
पहले जो रक्खा था यहाँ वो उन में दब कर

टूट के चकना-चूर हुआ या कोई कबाड़ी
सस्ते दामों ले के गया ये कौन बताए

ताल पे उस के लाए हुए स्टीरियो म्यूज़िक सिस्टम के
सब थिरक रहे हैं

ऐसे शोर-शराबे में अब उस की कौन सुनेगा
पहले घर वालों से आई एस डी पर

मिनटों का ही राब्ता इक क़ाएम तो हो जाता था


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