उस को यूँ लगता था जैसे कुछ न कुछ कल हो रहेगा जब वो मुड़ कर देखता था उस को यूँ लगता था जैसे इक बहन के सात बेटे उस का पीछा कर रहे हों आइने में अक्स उस को सिर्फ़ गर्दन तक दिखाई दे रहा था उस की परछाईं यूँ लगती थी कि जैसे रौज़नों से अट गई साँस की आवाज़ जाने किस जगह गुम हो गई थी हर सितारा जैसे ख़ुद को आँख में दोहरा रहा था जब वो चाहता था तो उस के नक़्श-ए-पा मिट्टी पे बनते ही नहीं थे जैसे उस ने सुर्ख़ शो'ले हार में गूंथे हुए हों जैसे वो मथुरा में मादर-ज़ाद नंगा फिर रहा हो और उस को याद आया उस को नारद ने बताया था वो अपने बाप का बेटा नहीं है उस का तन्हा फ़र्ज़ अपने रिश्ता-दारों पर मज़ालिम तोड़ना है उस को क्या मालूम था जब मौत आएगी तो रिश्ता-दार बन कर आएगी जब वो मुड़ कर देखता था उस को यूँ लगता था जैसे आठवें बेटे के दस्त-ए-रास्त में इक गदा है जिस पे उस के नाम के हिज्जे रक़म हैं