घटा छाई है सावन की झड़ी है दिल-ए-मग़्मूम की खेती हरी है छलक उट्ठा है पैमाना नज़र का बुख़ार-ए-दिल की आशुफ़्ता-सरी है रुख़-ए-महताब पर तारों के हाले ये तारे हैं कि मोती की लड़ी है उजाले के लिए शम-ए-फ़रोज़ाँ अंधेरे में सर-ए-मिज़्गाँ धरी है गुल-ए-नर्गिस पे हैं शबनम के क़तरे कि सीपी है जो मोती से भरी है उमँड आया है दरिया जज़्ब-ए-दिल का भँवर में सब्र की कश्ती पड़ी है 'जमील' अशआ'र में गौहर-फ़िशानी ये चश्म-ए-तर की सब जादू-गरी है