वो वा'दा आप का वा'दा न अब तक हो सका पूरा ज़मीं बदली ज़माँ बदला मगर वो वा'दा-ए-फ़र्दा अभी तक इक मुअ'म्मा है अगरचे ये हक़ीक़त है कि रंग-ए-ख़ुसरवी बदला जहान-ए-ख़ुद-फ़रामोशी के बादल छट गए सारे शफ़क़ फूटी किरन फूटी धनक उभरी मगर सूरज जो निकला सुब्ह-दम तो ख़ुद अपनी तीरा-बख़्ती पर पशेमाँ और मगर वो वा'दा-ए-फ़र्दा अभी तक इक मुअ'म्मा है ख़बर हो आप को शायद कि ज़ुल्मत के शिकंजे में सदाक़त सुब्ह की दहलीज़ पर घुट घुट के मरती है सहर ख़्वाब-ए-परेशाँ है वो वा'दा आप का वा'दा न जाने कब हदीस-ए-दिल बनेगा और मीज़ान-ए-सदाक़त में तुलेगा रू-ब-रू सब के