आज फिर है हमें ख़ुशी ऐ दोस्त आई छब्बीस जनवरी ऐ दोस्त या'नी तारीख़ वो कि जब भारत पा गया अपनी गुम-शुदा दौलत हम ज़माने में बारयाब हुए अपने मक़्सद में कामयाब हुए आख़िर हम ने बदल लीं तक़दीरें तोड़ कर बंदगी की ज़ंजीरें अपनी कोशिश से बहरा-मंद हुए सारी दुनिया में सर-बुलंद हुए ख़ुश हुए शाद कहे जाने लगे हम भी आज़ाद कहे जाने लगे मुल्क में आया दौर-ए-जम्हूरी हो गई दूर सारी मजबूरी जो न कर पाए आज करने लगे हम ही मिल-जुल के राज करने लगे कहूँ क्या अपने रहबरों की बात दिन को दिन समझे वो न रात को रात जो भी कर सकते थे वो कर के रहे क्यों मुक़द्दर न फिर सँवर के रहे हम को आज़ादी आज है हासिल अब है हम सब पे फ़र्ज़ ऐ 'आदिल' उस की अज़्मत सदा रहे मलहूज़ हर तरह हम रखें इसे महफ़ूज़ इस पे कोई भी आँच आने न पाए जान जाए मगर ये जाने न पाए