मैं ने पूछा हकीम दादा से छींक आख़िर कहाँ से आती है मुस्कुरा कर जवाब उन्हों ने दिया नाक के दरमियाँ से आती है मैं ने उन से कहा कि दादा-जान इस से मतलब तो हल नहीं होता तब वो बोले कि नाक की जड़ में एक होता है छींक का खोता छींक रहती है अपने खोते में अपने अंडे उसी में देती है बाहर आना हो जब कभी उस को एक भरपूर उड़ान लेती है छींक को छेड़ते भी हैं कुछ लोग ले के नसवार डाल कर बत्ती इस से वो कुलबुला के उठती है ज़ोर से झाड़ती है दोलत्ती जब निकलते हैं छींक के बच्चे आदमी को ज़ुकाम होता है आँख जलती है नाक बहती है साँस लेना हराम होता है सुन के ये दास्तान-ए-वहशत-नाक नाक में च्यूंटियाँ सी रेंग गईं मेरा सारा वजूद डोल गया एक भौंचाल आ गया हाछीं