चोगा चुनती चिड़िया तेरी पलकों पर उगने वाले ख़्वाबों के अँखुए कौन चुन सकता है तू तो ये भी नहीं जानती जाने कब कोई मैली नज़रों का जाल तुझ पर फेंके और तू बे-नूर आँखों के पिंजरे में क़ैद हो कर तमाम उम्र के लिए चहकना भूल जाए चिड़िया तू तो पगली है चोगा चुनती ख़्वाब देखती है तुझे क्या मा'लूम है कभी कभी ख़्वाबों की माँग भरने के लिए आँखों की वीरान खिड़कियों से ठिठुरे हुए रुत जगे बूँद बूँद दिल की ज़मीन पर टपकते हैं तो वहाँ दूर दूर तक उदासी भरा जंगल अग आता है जिस पर सिवाए दुख दर्द के कोई फल नहीं लगता मगर भोली चिड़िया तू ये सब नहीं जानती शायद कभी जान भी नहीं सकती