कल रात कहानी परियों की बाजी ने सुनाई चुपके से फिर धीरे धीरे हवा चली और निन्दिया आई चुपके से हल्के थे कहीं गहरे थे कहीं रंगों की वो बारिश देखी थी थीं जिस में बहुत सी तस्वीरें हम ने वो नुमाइश देखी थी फिर सब से छुपा के हम ने भी तस्वीर बनाई चुपके से फ़ुर्सत जो मिली तो हम यूँ ही कुछ वक़्त बिताने बैठे थे गर्मी के दिनों में ढोलक पर इक गीत सुनाने बैठे थे मग़रिब की तरफ़ से इतने में बदली भी घिर आई चुपके से