तीरगी में भयानक सदाएँ उठीं और धुआँ सा फ़ज़ाओं में लहरा गया मौत की सी सपेदी उफ़ुक़-ता-उफ़ुक़ तिलमिलाने लगी और फिर एक दम सिसकियाँ चार-सू थरथरा कर उठीं एक माँ सीना-कूबी से थक कर गिरी इक बहन अपनी आँखों में आँसू लिए राह तकती रही एक नन्हा खिलौने की उम्मीद में सर को दहलीज़ पर रख के सोता रहा एक मा'सूम सूरत दरीचे से सर को लगाए हुए ख़्वाब बुनती रही मुंतज़िर थीं निगाहें बड़ी देर से मुंतज़िर ही रहीं मौत की सी सपेदी उफ़ुक़-ता-उफ़ुक़ तिलमिलाती रही