हर इक गाम पर एक मद्धम सी आवाज़ कहती है ये रास्ता जाना पहचाना पुरखों का छाना हुआ रास्ता जाने-पहचाने रस्ते की आसानियाँ उन में बेजा तहफ़्फ़ुज़ हज़र की तमन्ना है तक़लीद का दाम-ए-ज़ंजीर है अपने पुरखों के छाने हुए रास्ते जिन पे आबा-ओ-अज्दाद चलते हुए एक मंज़िल पे क़रनों से क़ाएम रहे इन से बच कर गुज़र