मिरे नफ़्स की वादियों में यहाँ से निकल चलने जैसी हवा चल रही है उफ़ुक़-ता-उफ़ुक़ इक महकता धुआँ है सदा ज़ाइक़े रंग और लम्स ख़ुशबू में तहलील होने लगे हैं मह-ओ-साल-ए-रफ़्ता शब-ओ-रोज़-ए-आइंदा लम्हे में तब्दील होने लगे हैं ज़माँ एक सकता मकाँ एक नुक़्ता लकीरें अदद हर्फ़ सारे नम-आलूद काग़ज़ की तरकीब में घुल रहे हैं क़बाए-बदन सरसराती है असरार-ए-जाँ ज़ेर-ए-बंद-ए-क़बा खुल रहे हैं कोई सरमदी लौ सी उट्ठी है जिस से फ़ज़ा जल रही है हवा चल रही है