उम्र की धूप ढलने वाली है ज़िंदगी शाम करने वाली है कोई आवाज़ दे रहा है मुझे साथ चलने को कह रहा है मुझे जाना सब को है जाना ही होगा डर नहीं ये कि जाने क्या होगा किस तरह रूह बदन को छोड़ेगी इस का मस्कन भला कहाँ होगा जाने कैसा नया मकाँ होगा गोर में जाने कैसी गुज़रेगी रेज़ा रेज़ा बदन जो बिखरेगा डर नहीं ये कि जाने क्या होगा जैसी करनी है वैसा काटूँगी नेकियों पर है ए'तिबार मुझे अपने आ'माल पर भरोसा है डर तो बिल्कुल नहीं है क्या होगा डर तो बस सिर्फ़ इतना है दूर परदेस हैं मिरे प्यारे वक़्त-ए-रुख़्सत वो आ सकेंगे क्या