यहाँ से दरख़्तों का हर सिलसिला ख़त्म होता है अब सामने ज़र्द चटियल ज़मीनें हैं ख़्वाबों के मरक़द इरादों की लाशें रफ़ीक़ों के पिंजर बिखरते हुए रोज़-ओ-शब आसमानों की यूरिश यहाँ आज हम भी परेशान ज़ेहनों से गिरते हुए बीज बो दें कि रोज़-ए-क़यामत में ताख़ीर न रह जाए कोई ये चटियल ज़मीनें सुना है कि बंजर नहीं हैं ये फ़स्ल-ए-गुल का शगुफ़्ता-ओ-सरसब्ज़ इम्काँ अभी मेरे तेरे लहू में बिगड़ती सँवरती रग-ओ-पै में जलती कहानी के अंजाम का मुंतज़िर है